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एक वृक्ष

>> Saturday, June 23, 2007


एक वृक्ष है मेरे आँगन में
घना, छायादार,
फल फूलों से लदा ।
झूमता-इतराता ।
सुख-सम्पन्नता बरसाता ।
हम सब पर प्यार लुटाता ।
जाड़ा-गर्मी -बरसात ,
सभी से हमें बचाता ।
और सदा मुस्कुराता ।
हर मुसीबत, हर तकलीफ को,
चुटकियों में उड़ाता ।
उसकी स्नेहिल छाया में-
सारा घर आश्रय पाता ।
दादा-दादी की गोद में
मैं फूला नहीं समाता ।
मेरे पूज्य, मेरे भय त्राता
दो आशीष रहूँ मुसकाता ।

2 comments:

आशीष "अंशुमाली" July 25, 2007 at 6:40 PM  

मुस्‍कान को सहेजे हुए एक सुन्‍दर कविता.. खोज भी तो उसी की है।
बधाई स्‍वीकारें।
आपका स्‍वर भी सुना हिन्‍द-युग्‍म के पाडकास्‍ट पर.. मधुर लगा आपका कंठ।

आशीष "अंशुमाली" July 25, 2007 at 7:05 PM  

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