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meri परछाईh

>> Thursday, October 18, 2007

2 comments:

Udan Tashtari October 18, 2007 at 10:06 PM  

कविता अच्छी लगी. साथ में कविता लिखित में भी रहती तो सुनने का आनन्द और बढ़ जाता है. मात्र सुझाव है कृप्या अन्यथा न लें.

पारुल "पुखराज" October 18, 2007 at 10:13 PM  

सुनना बहुत अच्छा लगा……बहुत खूब

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