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माँ सरस्वती

>> Sunday, February 10, 2008


माँ!
तुम कब तक यूँ ही
कमलासना बनी
वीणा- वादन करती रहोगी?
कभी-कभी अपने
भक्तों की ओर
भी तो निहारो
देखो--
आज तुम्हारे भक्त
सर्वाधिक उपेक्षित
दीन-हीन जी रहे हैं
भोगों के पुजारी
महिमा-मंडित हैं
साहित्य संगीत
कला के पुजारी
रोटी-रोज़ी को
भटक रहे हैं
क्या अपराध है इनका-?
बस इतना ही- -
कि इन्होने
कला को पूजा है?
ऐश्वर्य को
ठोकर मार कर
कला की साधना
कर रहे हैं ?
कला के अभ्यास में
इन्होने
जीवन दे दिया
किन्तु लोगों का मात्र
मनोरंजन ही किया ?
माँ!
आज वाणी के पुजारी
मूक हो चुके हैं
और वाणी के जादूगर
वाचाल नज़र आते हैं
आज कला का पुजारी
किंकर्तव्य-मूढ़ है
कृपा करो माँ--
राह दिखाओ
अथवा ----
हमारी वाणी में ही
ओज भर जाओ
इस विश्व को हम
दिशा-ग्यान कराएँ
भूले हुओं को
राह दिखाएँ

धर्म,जाति और
प्रान्त के नाम पर
लड़ने वालों को
सही राह दिखाएँ
तुमसे बस आज
यही वरदान पाएँ


4 comments:

Reetesh Gupta February 11, 2008 at 7:39 AM  

कृपा करो माँ--
राह दिखाओ
अथवा ----
हमारी वाणी में ही
ओज भर जाओ

आपकी मनोकामना सत्य हो ...हमारी ऎसी भावना है...सुंदर ..बधाई

Rajesh February 11, 2008 at 4:36 PM  

इस विश्व को हम
दिशा-ग्यान कराएँ
भूले हुओं को
राह दिखाएँ
धर्म,जाति और
प्रान्त के नाम पर
लड़ने वालों को
सही राह दिखाएँ
तुमसे बस आज
यही वरदान पाएँ
bahut hi achhi kaamna ki hai aapne maa Saraswati ji se. Aur asha karta hoon ki aap ki yah manokamna Maa Saraswati purna kare. Kyon ki aap writers hi ve log hai, jo is jagat mein hamesha sandes pahunchate hai!!!!!!!!

शोभा February 11, 2008 at 4:59 PM  

रितेश जी तथा राजेश जी
बहुत-बहुत धन्यवाद। बसन्त पंचमी की बधाई ।

आशीष "अंशुमाली" March 12, 2008 at 4:18 PM  

सरस्‍वती कमलासना हो गयी, मुश्किलों की जड़ यहीं है।

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