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एक बयान

>> Saturday, March 29, 2008


आज मैं......
एक बयान
दर्ज करवाना चाहती हूँ

मैं --
अपने पूरे होशोहवास में
घोषणा करती हूँ
कि मैं -
बहुत ही कमजोर
एवं निर्बल नारी हूँ

कमजोर शरीर से नहीं
मन से
कामनाओं के भँवर से
कभी निकल ही
नहीं पाती हूँ

बार-बार यत्र- तत्र
मँडराती हूँ
और हमेशा
कामनाओं का
ग्रास बन जाती हूँ

कहीं कुछ भी दिखता है
तो मुझे पानी का
भ्रम हो जाता है
मैं तीव्रता से
उस ओर लपक जाती हूँ

किन्तु हर बार
रेत से टकराकर
बिखर जाती हूँ
जाने कितनी ही बार
यूँ ही भटकी हूँ
पर आज तक
जहाँ थी वहीं अटकी हूँ

जाने कब से टूटती
जा रही हूँ
पर पता नहीं क्यों
कुछ समझ नहीं पा रही हूँ

मेरी इस कमजोरी से
कितने ही लोग
भ्रमित हुए हैं
बहुत कुछ पाने के लालच में
मेरे ईर्द-गिर्द मँडराए हैं

किन्तु मैने हर बार
उन पर ज़ुल्म ढ़ाए हैं
मुझे अचानक ये सब
बहुत कुरूप लगने लगे हैं

मेरा हर कदम
इनसे अलग जाता है
मुझे खुद नहीं पता
मेरा गंतँव्य क्या है
किन्तु ये सच है कि
मेरी आँखोंने हमेशा
बहुत से खाव्ब सजाए हैं

जो कभी भी
पूरे नहीं हो पाए हैं
अब मुझे किसी पर
कोई विश्वास नहीं रहा
मैं अपने पूरे होशोहवास में
हर रिश्ता तोड़ देना
चाहती हूँ

कोमल भावनाओं को
छोड़ देना चाहती हूँ ।

और अपने जीवन की दिशा
मोड़ देना चाहती हूँ
किसी ऐसी दिशा की ओर
जहाँ सारी थकान दूर हो जाए
अशान्ति शान्ति में बदल जाए

जहाँ पर मैं ना रहूँ
तू ही तू हो जाए ।

5 comments:

Jitendra Gupta March 28, 2008 at 2:27 PM  

SHOBHA JII
pata nahi kyun aisaa lagta hai kii , aap kii yeh kavita mujhe Vichlit kar rahi hai.
Ek abla kii peedha hai ya fir ek purush kii Glanii..

Rajesh March 28, 2008 at 2:54 PM  

"Khudi ko kar buland itna ki ........ se pahle khuda tujse ye puchhe ki bata teri raza kya hai......." yah kahin padha aur suna hai. Apne aap ko itna majboot kijiye ki apni har ek kamjori uske aage nakam ho jaye. Shobhaji, aap ne hi to pahle likha tha ki "Naari tum keval Sablaa ho" aur aaj yah kya ho gaya? Kisi keemat per aadmi ko apne mann ko itna chanchal nahi hone dena chahiye ki wah yahan-wahan bhatakta firne lage, kuchh paane ki ummeedon mein. Aur ek baat, apna "gantavya" itna clear hona chahiye ko us tak pahoonchneka kahin se bhi rasta nikal aaye. Kisi se rishtey tod lene se hi sab kuchh khatam nahi ho jata Shobha ji. Itne kamjor mat banaiye apne aap ko..
Dhanyavaad

राज भाटिय़ा March 30, 2008 at 3:25 AM  

शोभा जी आज देखा Links comments देने केलिये मोजुद हे, आप की यह कविता कल पढी थी,ऎसी कविता कोई कम्जोर नही लिख सकता,कामनाओं के भँवर मे सभी फ़से हे,लेकिन जिन्दगी इसी का नाम हे, मुझे लगता हे आप टीचर हे तो आप तो हम से बेहतर जानती हे हमे जिन्दगी के हर इम्तहान मे पास होना हे,फ़ेल नही, तो चलिये अगले पेपर की तेयारी शुरु करे, ओर हर बार पास होना हे ओर फ़िर उस इम्तहान मे..जहाँ पर मैं ना रहूँ
तू ही तू हो जाए ।
जहाँ पर मैं फ़ेल ना रहूँ
पास ही हो जाऊ।

आशीष "अंशुमाली" March 30, 2008 at 11:33 AM  

होशोहवास में आप बहुत अच्‍छा कर रही हैं... भई, पसन्‍द आया बहुत। तुलसी की चौपाई याद आ गयी..
सबहि नचावत राम गुसांई।।
नर नाचत मर्कट की नाईं।।
दरअसल खुद की ढीला होने में जितना वक्‍त लगे बस उतना ही...

Alpana Verma April 1, 2008 at 4:31 PM  

lagta hai jaise kavita ka sara saaar simat aaya hai in do panktiyon mein---


जहाँ पर मैं ना रहूँ
तू ही तू हो जाए ।

sundar abhivayakti

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