फिर उठी है टीस
>> Tuesday, April 29, 2008
फिर उठी है टीस कोई
चिर व्यथित मेरे हृदय में
उठ रहे हैं प्रश्न कितने
शून्य पर- नीले- निलय में
फिर लुटा विश्वास है
चोट फिर दिल पर लगी है
फिर चुभी एक फाँस है
दम्भी नर के सामने
द्रोपदी फिर से खड़ी है
कायरों के सामने
राधा का इक श्याम से
जल रहे हैं नेत्र मेरे
नारी के अपमान से
भय हारिणी और पालिनी
मातृ रूपा स्वयं है तू
स्नेह छाँह प्रदायिनी
प्रेम के मोह- जाल में
माँगती उससे सहारा
जो स्वयं भ्रम- जाल में
दुष्यन्त की हर चाल को
द्रोपदी पहचान ले
नर दम्भ निर्मित जाल को
फिर जगा विश्वास को
आंख का धुँधका मिटा ले
जीत ले संसार को
कायरों की भीड़ में
अब उड़ा दे मोह पंछी
जो छिपा है नीड़ में
अपने अतुल विश्वास से
स्वयं-सिद्धा बन बदल दे
विश्व को विश्वास से
11 comments:
हर छन्द ओज से ओतप्रोत है। नारी की प्रसुप्त गरिमा को झिंझोड़ने वाली यह पंक्तियां विशेषकर अच्छी लगीं...
कर अचंभित विश्व को
अपने अतुल विश्वास से
स्वयं-सिद्धा बन बदल दे
विश्व को विश्वास से
फिर शकुन अपमानिता है
दम्भी नर के सामने
द्रोपदी फिर से खड़ी है
कायरों के सामने
ये पंक्तिया बहुत गहरे भाव लिए हुए है.. आपकी ये रचना बधाई की पात्र है स्वीकार करे..
शोभा जी,
जीवन्त सशक्त रचना के लिये बधाई
कर अचंभित विश्व को
अपने अतुल विश्वास से
स्वयं-सिद्धा बन बदल दे
विश्व को विश्वास से
सचमुच मन में विश्वास हो तो दुनिया में कौन सी ऐसी मंजिल है जिसे प्राप्त नहीं किया जा सकता.
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद उत्साह बढ़ाने के लिए।
बहुत खूबसूरत रचना !
नारी की आत्मशक्ति को जगाती एक प्रेरणादायक कविता !
खोज मत अब तू सहारा
कायरों की भीड़ में
अब उड़ा दे मोह पंछी
जो छिपा है नीड़ में
कर अचंभित विश्व को
अपने अतुल विश्वास से
स्वयं-सिद्धा बन बदल दे
विश्व को विश्वास से
बेहतरीन रचना...
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत सुन्दर भाव-बढ़िया रचना. बधाई.
फिर शकुन अपमानिता है
दम्भी नर के सामने
द्रोपदी फिर से खड़ी है
कायरों के सामने
ye panktiya bahut achhi lagi.
आत्मशक्ति को जगा और
फिर जगा विश्वास को
आंख का धुँधका मिटा ले
जीत ले संसार को
कर अचंभित विश्व को
अपने अतुल विश्वास से
स्वयं-सिद्धा बन बदल दे
Shobhaji you have always been writing any poem or any article with full of energy in it. Naari ko swayam siddha banane ke liye kafi takat hai aapki is kavita mein. Dhanyavaad........
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