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प्रेमी बादल

>> Monday, May 26, 2008


देखो आकाश में

घना अँधेरा छाया है ।

लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है

इसके मन भावन रूप पर

धरती मोहित हो जाएगी ।

प्रेम की प्यासी अपना

आँचल फैलाएगी ।

और अमृत की वर्षा में

आकंठ डूब जाएगी ।

ऑंखों में रंग और

ओठों पे मधुर गीत

आया है ।

लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है ।

गर्मी की तपन

अब शान्त हो जाएगी ।

सूखी सी धरती पर

कलियाँ खिल जाएँगी ।

हर तरफ अब बस

हरियाली ही छाएगी ।

गर्मी से सबको ही

राहत मिल जाएगी ।

झूलों में बैठ कर

गीत याद आया है ।

लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है ।

धरती की प्रतीक्षा

रंग ले आई है ।

मदमदाती आँखों में

प्रेम छवि छाई है ।

अंग- अंग में यौवन की

मदिरा छलक आई है ।

नव अंकुरित सृष्टि ने

नयनों को लुभाया है ।

लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है ।

बादल और प्रेमी

आते और जाते हैं ।

संवेदनाओं के मधुर

फूल खिला जाते हैं ।

कभी यहाँ, कभी वहाँ

अलख जगाते हैं ।

नारी को केवल

सपने दे जाते हैं ।

प्रेम में मत पूछो

किसने क्या पाया है ।

लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है ।


16 comments:

vijaymaudgill May 26, 2008 at 4:47 PM  

क्या बात है। बहुत ही बढ़िया। आपकी कविता मुझे बहुत पसंद आई। आपने प्रेमी, बादल और स्त्री का जो तालमेल बिठाया है। प्रशंसनीय है। बहुत अच्छा आगे भी लिखते रहें।
शुभकामनाएं।

बालकिशन May 26, 2008 at 5:02 PM  

सुंदर! अति सुंदर!
बहुत खूब.

राजीव रंजन प्रसाद May 26, 2008 at 5:15 PM  

वाह!! आपके बिम्बों और प्रकृति से जुडी कल्पनाओं की जितनी प्रशंसा की जाये कम है।

***राजीव रंजन प्रसाद

राजीव रंजन प्रसाद May 26, 2008 at 5:15 PM  

वाह!! आपके बिम्बों और प्रकृति से जुडी कल्पनाओं की जितनी प्रशंसा की जाये कम है।

***राजीव रंजन प्रसाद

Mohinder56 May 26, 2008 at 5:53 PM  

शोभा जी,
मौसम अनुकूल रचना है...और मै राजीव जी की टिप्पणी से सहमत हूं...

हास्य के लिये
इस आवारा बादल ने आज कमाल कर दिया... गाडी एक फ़ुट पानी में से निकाल कर लानी पडी..साथ ही दोपहिया वाहन चालकों को तो ओलों की मार भी सहनी पडी..शायद यह प्रेमी अपनी प्रेयसी धरती से कुछ क्रुध जान पडता था.

रंजू भाटिया May 26, 2008 at 6:05 PM  

वाह आज की बारिश का असर आप पर हो ही गया ..बहुत सुंदर लिखी है आपने यह रचना :)

Anonymous May 26, 2008 at 6:08 PM  

your poem is great.

डॉ .अनुराग May 26, 2008 at 6:30 PM  

चलिए किसी पर तो मौसम का असर पड़ा.....आपकी कविता बहुत सुंदर है.......काश ये बादल बरकरार रहे

नीरज गोस्वामी May 26, 2008 at 7:30 PM  

इसी बारिश का इंतज़ार है.....काश आप की लफ्ज़ लफ्ज़ सच हो जाए...बहुत सुंदर रचना.
नीरज

सुनीता शानू May 26, 2008 at 8:25 PM  

अहा बेहद मधुर गीत...

Udan Tashtari May 26, 2008 at 10:46 PM  

बेहतरीन. बहुत सुन्दर.

Anonymous May 27, 2008 at 7:53 AM  

बहुत सुंदर कल्पना, शोभा जी !

Unknown May 28, 2008 at 9:32 AM  

कालिदास ने बादल को संदेशवाहक के रूप में वर्णित किया था. आप ने उसे प्रेमी के रूप में देखा. अति सुंदर.

Rajesh May 28, 2008 at 3:13 PM  

Shobhaji, very nice poem. Baadal Premi aur Dharti Premika ke roop mein hamesha se hi rahe hai. Is Premika ko hamesha hi is Premi ki tadap rahi hai aur har saal jab pahli baar yah Premi ka avagaman hota hai, Premika ki sunderta dekhte hi ban jati hai. And one more thing, your poem is completely made on the present atmosphere. This is a presence of mind.

शोभा May 28, 2008 at 6:13 PM  

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। सस्नेह

आशीष कुमार 'अंशु' May 30, 2008 at 11:09 AM  

बहुत ही बढ़िया।

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