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टीस सी जग जाती है

>> Monday, July 21, 2008


मन का तहखाना

कैद है जिसमें

असंख्य रिश्ते--

जिनको आज तक

नाम नहीं दे पाई

किन्तु---आज भी-

-हर रिश्ते से बढ़कर

हर कदम पर

हर पल

बहुत करीब रहते हैं

अकेलेपन में

उनकी परछाई

सदा आस -पास

मँडराती रहती है

अदृश्य बाँहें-

सदा संरक्षण देती

तथा प्यार से

थपथपाती हैं

कभी-कभी अचानक

अतीत प्रत्यक्ष होकर

आसक्ति जगाता है

बीते दिनों को

फ़िर से बुलाता है

प्रेमांगन में-

भीनी सी खुशबू

तीव्रता से आती है

और दूर ले जाती है

अलभ्य को ---

पाने की कामना

बलवती हो जाती है

और --दिल के किसी कोने में

एक टीस सी जग जाती है ।

10 comments:

मीनाक्षी July 21, 2008 at 5:25 PM  

बहुत खूबसूरत भाव भीनी रचना....भीनी सी खुशबू लिए रिश्ते जीवन-बगिया को महका देते हैं.. टीस क्यों ..?

रंजू भाटिया July 21, 2008 at 6:21 PM  

प्यार भी टीस भी दोनों रंगों को खूब अच्छे से लिखा है आपने अपनी इस रचना में शोभा जी कुछ मीठी कुछ कहती ......

डॉ .अनुराग July 21, 2008 at 6:42 PM  

अकेलेपन में

उनकी परछाई

सदा आस -पास

मँडराती रहती है

अदृश्य बाँहें-

सदा संरक्षण देती

तथा प्यार से

थपथपाती हैं

bahut khoobsurat.....sab kuch kah diya aapne kam shabdo me...

vipinkizindagi July 21, 2008 at 7:06 PM  

अकेलेपन में उनकी परछाई.............

अच्छा लिखा है

परमजीत सिहँ बाली July 21, 2008 at 7:14 PM  

बहुत बेहतरीन रचना है।अच्छी लगी।

अलभ्य को ---


पाने की कामना


बलवती हो जाती है

Udan Tashtari July 21, 2008 at 8:31 PM  

बहुत बढ़िया..भावपूर्ण! बधाई.

Arvind Mishra July 21, 2008 at 11:02 PM  

अलभ्य को पा लेना प्रायः मोहभंग का कारण भी बनता है .इसकी जिजीविषा बनी रहे तभी बेहतर -लक्ष्य नहीं इसकी साधना का आनंद भी कुछ कम आह्लादकारी नही .

राज भाटिय़ा July 22, 2008 at 12:23 AM  

कया भाव हे...
अकेलेपन में

उनकी परछाई

सदा आस -पास

मँडराती रहती है

अदृश्य बाँहें-

सदा संरक्षण देती

तथा प्यार से

थपथपाती हैं
बहुत बहुत धन्यवाद

नीरज गोस्वामी July 22, 2008 at 10:21 AM  

हर संवेदन शील दिल आप की टीस को महसूस कर सकता है...बहुत सुंदर शब्दों में लिखी भावपूर्ण रचना...बधाई
नीरज

Rajesh July 24, 2008 at 2:24 PM  

कभी-कभी अचानक
अतीत प्रत्यक्ष होकर
आसक्ति जगाता है
बीते दिनों को
फ़िर से बुलाता है
प्रेमांगन में-
भीनी सी खुशबू
तीव्रता से आती है
और दूर ले जाती है
Yah ATEET bhi ek bahot buri bala hai. Beete dinon ko koi bhula bhi nahi pata aur use bula bhi nahi paata koi. Aur isi liye -
अलभ्य को ---
पाने की कामना
बलवती हो जाती है
और --दिल के किसी कोने में
एक टीस सी जग जाती है ।
kyon ki Ateet ko pana bhi alabhya hi hai aur usi alabhya ko paane ki kaamna puri na hone per dil ke kisi kone mein EK TEES SI JAGATI HAI!!!!!!!!!

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