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कौन हो तुम…

>> Saturday, February 7, 2009

कौन हो तुम…
बता दो……
मैं जानना चाहती हूँआकर्षण की डोरी
क्यों फेंक रहे हो?
मैं इसमें बँधती जा रही हूँ
बहुत कुलबुला रही हूँ
सम्मोहन का जाल
क्यों बुन रहे हो?
ये मुझे कसता जा रहा है
मैं इसमें कसमसा रही हूँप्रेम की मदिरा
क्यों बहा रहे हो
ये मुझे मदहोश कर रही है
मैं इसमें डूबती जा रही हूँतुम्हारे सम्मोहन ने मुझे
परवश कर दिया है
दीन और कातर बना दिया हैमैं अपनी सुध-बुध
अपने होशोहवास
सब खो बैठी हूँतुम्हारे ही ध्यान में
हर पल डूबी रहती हूँतुम ये प्रेम की बीन
क्यों बजा रहे हो?
इसपर मैं थिरकती जा रही हूँ
इस थिरकन में आनन्द तो है
पर दर्द की लहरों के साथ
जो मुझे पल भर भी
चैन से जीने नहीं देताऐ दोस्त!
मुझे इतना ना सताओ
मेरी दशा पर
कुछ तो तरस खाओसम्मोहन का गीत
अब ना सुनाओ
जहाँ से आए हो
वहीं लौट जाओ

15 comments:

Vinay February 7, 2009 at 8:37 AM  

बहुत हृदयस्पर्शी और सम्मोहक रचना है

sanjay vyas February 7, 2009 at 9:41 AM  

mesmerizing!!

नीरज गोस्वामी February 7, 2009 at 10:23 AM  

अद्भुत गीत की रचना कर दी है आपने शोभा जी...बहुत खूबसूरत भाव और उतने ही सुंदर शब्द...
नीरज

रंजू भाटिया February 7, 2009 at 11:13 AM  

शोभा जी वाह बहुत रूमानी कविता लिखी है आपने ...बहुत सुद्नर भाव लगे इस के

परमजीत सिहँ बाली February 7, 2009 at 11:18 AM  

बहुत सुन्दर रचना है\बधाई स्वीकारें।

Unknown February 7, 2009 at 11:23 AM  

कविता है या दिल से निकली
कोई नदी जो
बहा ले जा रही है
मीठे-मधुर शब्दों को
अनंत की तरफ़.
.......
बेहतरीन.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' February 7, 2009 at 12:01 PM  

आ भी जाओ या लौट ही जाओ,
मेरा मन क्यों खराब करते हो?
यूँ सताना किसी को ठीक नही,
बेरुखी क्यों जनाब करते हो।।

Manjit Thakur February 7, 2009 at 12:14 PM  

कविता में सम्मोहन है लेकिन कुछ और कसिए..

कुश February 7, 2009 at 12:48 PM  

अद्भुत रचना..

संगीता पुरी February 7, 2009 at 2:10 PM  

बहुत सुंदर...

राज भाटिय़ा February 7, 2009 at 2:52 PM  

बहुत ही सुंदर कविता, अति सुंदर भाव, धन्यवाद

Anonymous February 7, 2009 at 5:05 PM  

सुंदर और प्रेम रस से सराबोर,
सुंदर भावों की अभिव्यक्ती.
बधाई स्वीकारिये

अभिषेक मिश्र February 9, 2009 at 5:54 PM  

सम्मोहन का गीत अब न सुनाओ,
जहाँ से आए हो, वहीं लौट जाओ.
सुंदर, भावपूर्ण कविता.

भाई गुडिया February 26, 2009 at 8:45 PM  

भाव पूर्ण कविता के लिए साधुवाद.

Rajesh March 12, 2009 at 4:04 PM  

Bebasi ki kasis kafi gahari dikhayi de rahi hai........

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