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मेरी आँखों में

>> Thursday, February 26, 2009


बरस गए हैं मेरी आँखों में

हज़ारों सपने

महकने लगे हैं टेसू

और मन

बावला हुआ जाता है


सपनों की कलियाँ

दिल की हर डाल पर

फूट रही है

और ये उपवन

नन्दन हुआ जाता है


समझ नहीं पा रही हूँ

ये तुम हो या मौसम

जो बरसा है

मुझपर

फागुन बनकर

25 comments:

परमजीत सिहँ बाली February 26, 2009 at 11:40 AM  

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

नीरज गोस्वामी February 26, 2009 at 11:43 AM  

ला जवाब रचना है...वाह...बहुत ही मखमली से ख्याल हैं...

नीरज

Mohinder56 February 26, 2009 at 12:13 PM  

ये तो दोनों ही लगते हैं "वो" भी और "मौसम" भी तभी तो इतने अच्छे भाव फ़ूटे दिल से

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) February 26, 2009 at 12:14 PM  

सर्दियों की धूप की की गुनगुनाहट लिए ....बहुत सुन्दर !!!

अखिलेश सिंह February 26, 2009 at 12:29 PM  

शानदार अभिव्यक्ति...

रंजू भाटिया February 26, 2009 at 1:12 PM  

बहुत सुन्दर लगी यह रचना आपकी शोभा जी

Anonymous February 26, 2009 at 1:58 PM  

bahut khubsurat bhav waah

MANVINDER BHIMBER February 26, 2009 at 2:43 PM  

fag ke makhamali khoobsurat khyaal ....achche lage

Vinay February 26, 2009 at 3:21 PM  

सुन्दर और मनोरम रचना!

अनिल कान्त February 26, 2009 at 5:36 PM  

भावों से भरी हुई रचना

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

रंजना February 26, 2009 at 6:01 PM  

आपने भावों के जो खूबसूरत रंग बिखेरे शब्दों के माध्यम से ,हम भी उसमे पूरी तरह रंग गए.

भाई गुडिया February 26, 2009 at 8:41 PM  

बहुत ही भावः पूर्ण रचना है. बहुत बढिया.

राज भाटिय़ा February 27, 2009 at 12:12 AM  

बहुत ही सुंदर ओर भाव पुर्ण रचना.
धन्यवाद

Anonymous February 27, 2009 at 5:10 PM  

jangal ki aag
tesu ko kahte hai

dil ki aag
fagun ko kahte hai

jivan me bikhraave rang
use holi kahte hai

binaa pani range
use rangoli kahte hain

aap ne jo yaad dilaai
use thitholi bhi kahte hain

daanish February 27, 2009 at 6:01 PM  

ख्यालात के इज़हार का बड़ा ही नफ़ीस अंदाज़

मौसम की इठलाती हुई करवटों से गुफ्तगू

नज़्म कह लेने का नायाब सलीका. . . .

मुबारकबाद . . . .

---मुफलिस---

राजीव करूणानिधि February 28, 2009 at 10:06 AM  

बहुत सुन्दर रचना लगी आपकी. आभार

kumar Dheeraj February 28, 2009 at 11:18 AM  

आपकी कलम ने एक औऱ खूबसूरत रचना पेश किया है आपको बधाई

Unknown February 28, 2009 at 2:18 PM  

हवा में बौराई मादकता
टेसू के फूलों का चटख रंग
धूप छाँव कीअठखेल में
उनींदी आँखे, दुखते से अंग
अल्हड़ता भरी बातें
कविता की रातें ......

फागुन लगता है आपके ब्लॉग पर ही नहीं सभी जगह आ गया .... शुभ कामना

Satish Chandra Satyarthi March 1, 2009 at 3:47 AM  

"समझ नहीं पा रही हूँ

ये तुम हो या मौसम"

बड़ा ही भावपूर्ण वर्णन.

योगेन्द्र मौदगिल March 1, 2009 at 8:34 PM  

वाह.... बेहतरीन भावाभिव्यक्ति... बधाई स्वीकारें

Alpana Verma March 2, 2009 at 1:25 AM  

faguni rang mein rangi sundar kavita dil ko bha gayee...

Science Bloggers Association March 2, 2009 at 3:52 PM  

समझ नहीं पा रही हूं
ये तुम हो या मौसम
जो बरसा है मुझपर
फागुन बनकर।

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ, बधाई।

अमिताभ श्रीवास्तव March 2, 2009 at 6:40 PM  

jab ham aalochna karte he to behisaab karte he kintu jab hame taareef karni hoti he to chand pankti me vyakt kar dete he..aapki rachna taareef ke kabil he..aour me ye chand pankti me hi karunga kyuki tarif jesi bhi ho apne aap me bahut bada darza rakhti he..

Rajesh March 9, 2009 at 5:34 PM  

समझ नहीं पा रही हूँ

ये तुम हो या मौसम

जो बरसा है

मुझपर

फागुन बनकर

Shobhaji, yah sab Fagun ke Mausam ka asar hai.

Rajesh March 9, 2009 at 5:36 PM  

Shobhaji,

Ek baat hai ki har kisi ko iska asar nahi ata hai. Rutu ke is Yah Sunder Manbhavan ras ko abhivyakt karne aur mahsoos kar ne ke liye ek Khoobsoorat Mann ka hona bhi jaroori hai, jo aap ke paas hai...

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