मेरे अनुभव को अपनी प्रतिक्रिया से सजाएँ

अंदाज़ अपना-अपना

>> Friday, April 10, 2009

प्यार की प्यास तो दोनो को थी
एक अतृप्त हो भटकता रहा
एक ने अपनी मंज़िल पा ली

रिश्तों के मरूस्थल
दोनो की राहों में थे
एक सूखी रेत से टकराता रहा
एक ने स्नेह की गागर छलका ली।


मर्यादाओं के काँटे
दोनो के जीवन में थे
एक बबूल बन चुभता रहा
एक ने फूलों से डाल सजा ली


स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली


ये अपना-अपना अंदाज़ नहीं तो
और क्या था शुभी
एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।

22 comments:

अनिल कान्त April 10, 2009 at 6:05 PM  

एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास भुझा ली ....

बहुत खूबसूरत लगी आपकी ये रचना

Arvind Mishra April 10, 2009 at 6:13 PM  

बढियां लगे कविता -कुछ लोग भले प्यासे रह जायं ओस से प्यास नहीं बुझा सकते !

mehek April 10, 2009 at 6:53 PM  

स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली

waah bahut hi sunder

mehek April 10, 2009 at 6:53 PM  

स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली

waah bahut hi sunder

समयचक्र April 10, 2009 at 9:13 PM  

आपकी ये रचना बहुत खूबसूरत लगी ....

समयचक्र April 10, 2009 at 9:14 PM  

आपकी ये रचना बहुत खूबसूरत लगी ....

ओम आर्य April 10, 2009 at 9:37 PM  

differences in perspective make lives widely different, ture.

डॉ. मनोज मिश्र April 10, 2009 at 11:55 PM  

स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली................
बहुत खूब .

Alpana Verma April 12, 2009 at 4:14 PM  

स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली
--बहुत ही सुन्दर रचना.

मुकेश कुमार तिवारी April 13, 2009 at 3:52 PM  

शोभा जी,

मर्यादाओं के काँटे
दोनो के जीवन में थे
एक बबूल बन चुभता रहा
एक ने फूलों की ड़ाल सजा ली

इन पंक्तियों ने अकर्मण्यता का दोष प्रारब्ध को दिये जाने वाले लोगों को नाखुश जरूर कर दिया होगा और वही एक कवि की सफलता है.

रचना अपने मक़सद में कामयाब है, बधाई.

मुकेश कुमार तिवारी

दिगम्बर नासवा April 15, 2009 at 5:01 PM  

सत्य कहा.........प्यार में हर कोई अपनी अपनी राह लेट है, जीवन कोई अनबूझ पहेली ही तो है, बहुत कुछ कह गयी है ये कविता..............लाजवाब

Science Bloggers Association April 15, 2009 at 5:39 PM  

रूमानी जज्बातों से लबरेज एक खूबसूरत नज्म। बधाई।
----------
तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

Rajesh April 16, 2009 at 12:38 PM  

एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।

Bus yahi to jeevan ka sutra hai, karm karte raho, fal apne aap hi milte rahenge

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर April 18, 2009 at 7:43 AM  

nasib me jiske jo likha tha....narayan narayan

Dr. Zakir Ali Rajnish April 21, 2009 at 12:07 PM  

यही अंदाज लोगों की पहचान होता है।

बहरहाल, सुन्‍दर कविता, बधाई।

-----------
खुशियों का विज्ञान-3
ऊँट का क्‍लोन

vijay kumar sappatti April 24, 2009 at 3:48 PM  

shoba ji ,

main kya kahun , itni behtar rachana main bahut kam padhi hai .. man trupt ho gaya ji ..


vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com

admin April 24, 2009 at 4:23 PM  

जीवन की दो भिन्न सोचों को आपने बहुत खूबसूरती से कविता में पिरो दिया है। बधाई स्वीकारें।

----------
TSALIIM.
-SBAI-

sandhyagupta April 27, 2009 at 10:14 PM  

Atyant sundar abhivyakti.Badhai.

Science Bloggers Association April 29, 2009 at 5:01 PM  

आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा है।
----------
सम्मोहन के यंत्र
5000 सालों में दुनिया का अंत

अमिताभ श्रीवास्तव May 1, 2009 at 6:22 PM  

behtar///////
AAPKA BHI ANDAAJ E BAYAA AOUR HE>

meri poems July 13, 2009 at 8:36 PM  

bahut saandar hai its truly mind blowing

Reetika August 26, 2009 at 4:07 PM  

sahi kaha hai aapne....apna apna nazariya hota hai !

  © Blogger template Shiny by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP